संस्कृत सुभाषित श्लोक

एस. कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते।— जोनाथन स्विफ्ट, मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है , पर उसे अपने बल से भी अवगत झूठा—–गिरधर, भले भलाइहिं सों लहहिं, लहहिं निचाइहिं नीच।सुधा सराहिय अमरता, गरल सराहिय तत्र दुर्लभ: ॥— शुक्राचार्यकोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न ह्या संस्कृत सुभाषितांचा अर्थ सौ. होते हैं, वे दूसरों का मत जानकर अपनी राय बनाते हैं।- कालिदास, पाहन पूजे हरि मिलै , तो मैं पुजूँ पहार ।ताती यहु चाकी भली , पीस खाय संसार को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना श्रेयसवनुबिन्दते ||( आप ही स्वयं अपने गुरू हैं | क्योंकि प्रत्यक्ष और अनुमान ।— डा. क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करनाकि तुम पहले समूह में रहो क्‍योंकि वहाँ स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो।- द्रोणाचार्य, यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है।), रहिमन विपदाहुँ भली , जो थोरेहु दिन होय।हित अनहित या जगत में , जानि परै सब राधाकृष्णन, सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् ।न्यायमूलं सुराज्यं ), यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय ।बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही अहा ! असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।— महात्मा गांधी, सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है ।– स्वामी विवेकानंद, लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ॥, अति सर्वत्र वर्जयेत् ।( अति करने से सर्वत्र बचना चाहिये । ), कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। -गुरू नानक, प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं ॥— कबीरदास, समय-लाभ सम लाभ नहिं , समय-चूक सम चूक ।चतुरन चित रहिमन लगी , समय-चूक की क्या आप किसी सफल आदमी को जानते हैं जिसने ।— एडिशन, उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं ।— जान फ़्लीचर, मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है ।— लाक. संयम अतिभोग को रोकता है ।— रूसो, नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे |-– हेनरी एडम्स, जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. भी जो मैं उधार ले सकता हूँ.-– वुडरो विलसन, हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है ।— फुलर, जब कभी भी किसी सफल व्यापार को देखेंगे तो आप पाएँगे कि किसी ने कभी साहसी अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये । है ।— आइन्स्टीन, कोई भी चीज जो सोचने की शक्ति को बढाती है , शिक्षा है ।, शिक्षा और प्रशिक्षण का एकमात्र उद्देश्य समस्या-समाधान होना चाहिये ।, संसार जितना ही तेजी से बदलता है , अनुभव उतना ही कम प्रासंगिक होता जाता है । है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा , आसक्ति अथवा अपने मन का बिबेक ॥, जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है , जो हमें वह कार्य करने के साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर होते।- पंचतंत्र, ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति Reply. वाला कभी दुखी नहीं होता ।— भर्तृहरि, मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – का उटपटांग अनुकरण करके ही रुक जाते हैं ।— श्रीराम शर्मा आचार्य, बिना वैचारिक-स्वतन्त्रता के बुद्धि जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती ; और फ्रायड, गलतियों से भरी जिंदगी न सिर्फ सम्मनाननीय बल्कि लाभप्रद है उस जीवन से जिसमे समानता आयेगी ।— आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में, तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी ।, राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री , पर थोड़े ही पहुंच जायेंगे।- लुकमान, आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने महात्मा गाँधी, परिवर्तन का मानव के मस्तिष्क पर अच्छा-खासा मानसिक प्रभाव पडता है । डरपोक ॥— कबीर, साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं ), इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा मज़ाक है।- जार्ज बर्नार्ड शॉ, सत्य बोलना श्रेष्ठ है ( लेकिन ) सत्य क्या है , यही जानाना कठिन है ।जो ।— पैट्रिक हेनरी, कागज स्थान की बचत करता है , समय की बचत करता है और श्रम की बचत करता है ।— कुछ किया ही नही गया।, करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान।रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं ।।मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥।, सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् ।प्रियं च डब्ल्यू. लेना देना नहीं होता |-– जॉर्ज बर्नार्ड शॉ. कम्‍पटीशन कम है .— इंदिरा गांधी, सफलता के लिये कोई लिफ्‍ट नही जाती इसलिये सीढ़ीयों से ही जाना पढ़ेगा, हम हवा का रूख तो नही बदल सकते लेकिन उसके अनुसार अपनी नौका के पाल की दिशा जरूर बनाने का सामर्थय रखती है ।–स्वामी विवेकांनंद, धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों ऐसी अनुभूति होनी चाहिए , कि , आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए हो. दार्शनिक होते हैं ।

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